एक बावली सी लड़की
थी एक बावली सी लड़की,
बड़ी ही ज़िद्दी थी,
बस अपनी ही मनमानी करती थी वो,
और नकचढ़ी भी कहते थे लोग उसे,
पर थी बड़ी ही मासूम भी,
भोली-भाली सी, सीधी-साधी सी,
जो किसी को रोते देखे तो खुद भी रो पड़े,
ऐसी पागल थी वो,
हर वक़्त ख़्वाबों में गुम रहने वाली,
बात ही बात पे मुस्कुराने वाली,
जाने अब कहाँ गुम हो गयी है वो,
कौन सा ऐसा दुःख उसे,
अब वो मुस्कुराती भी नहीं,
चुपके- चुपके रोती रहती है वो,
जाने कौन सा गम है जो,
अब वो खुद से ही रूठी सी लगती है,
लोगों की भीड़ में भी तन्हा-तन्हा
फिरती रहती है वो,
जाने क्या गम है उसे,
जो खुद से ही अब रूठ गयी है वो,
जाने कहाँ खो गयी है वो बावली सी लड़की,
वो नकचढ़ी, ज़िद्दी सी लड़की,
जाने क्यों तन्हा-तन्हा फिरती रहती है वो,
जाने क्यों अब चुप-चुप सी रहने लगी है वो,
जाने क्यों, जाने क्यों, जाने क्यों????