एक बार बोल क्यों नहीं
आज भी विवेक वहीं रास्ता से बाजार से घर जाना पसंद करता है क्योंकि उस रास्ते में वह एक बार किसी का झलक पाना चाहता है । कहीं दिख जा – कहीं दिख जा ,यद्यपि वह रास्ता विवेक के लिए लंबा ही पड़ता है, घर जाने के लिए लेकिन उसका एहसास रत्ती भर भी उसे मन में नहीं होता था। उस रास्ता में विवेक मधुर संगीत की ध्वनि बहुत प्रेम से सुन पाता था,कहीं पर सोनार दुकान की आभूषण बनाने का मीठा सा सुर हो,कहीं पर रजिया – तोशक बनाने वाला गीतार की आवाज या डिस्को डांसर वाला लोहार की दुकान पर हथोड़ा मारने का सुर । विवेक का पसंदीदा गाना में से
एक गाना था।
“घर से निकलते ही,
कुछ दूर चलते ही
रस्ते में है उसका घर…
कल सुबह देखा तो
बाल बनाती वो…
खिड़की में आयी नज़र…
विवेक एक सुगठित शरीर वाला जवान लड़का है जो दो साल पहले ही अपनी महाविद्यालय से बी. ए (इंगलिश) पहला दर्जा से पास कर चुका है।
विवेक जिसकी एक झलक पाने के लिए उस रास्ता का
चुनाव करता है । वह स्कूल से ही उसे पहचानता था- रिंकी। रिंकी और विवेक एक स्कूल से पास कर महाविद्यालय पहुंचे थे । विषय भी इंग्लिश रहने के कारण नोट का लेन- देने भी कभी – कभी हो जाती थी जिसमें विवेक भीतर ही भीतर आनंद का अनुभव करत था । स्कूल के समय से विवेक, रिंकू को छुप – छुप कर देखना पसंद करता था।जब कभी भी दोनों की आंखें एक दूसरे लड़ जाती थी , दोनों शर्मा के एक
-दूसरे का प्रेम का राजा मंदी भरोसा भी देती थी।कल्पनाएं और आशाएं से भरा प्यार स्कूल से महाविद्यालय तक पहुंच चुका था।
एक प्रेमी हमेशा के लिए प्रेमी के रूप में नहीं रह सकता है ।विवेक एक तरफ प्रेम नहीं था रिंकी भी छुप छुप कर देखना पसंद करती थी लेकिन दोनों एक दूसरे से बोले में एक अच्छा मौके के तलाश में महाविद्यालय से पास कर के भी निकल गए किन्तु अपने अनुभूति के बारे में रिंकी को बता ही नहीं पाता है ।लगातार कोरोना के महामारी , कर्फ्यू जैसा माहौल के चलते
वह घर से निकाल ही नहीं पा रहा था लॉकडाउन से कुछ राहत के बाद, विवेक घर के कुछ काम से बाजार गया ।वह आज किशोर का गाना धुन गाते – गाते जा रहा था कि आज एक झलक रिंकी का मिल जाता तो कोरोना वायरस बाजार में उसका कुछ कर नहीं पाएगा और उसका दिन भी बन जाएगा । विवेक तो मानो हक्का – बक्का रह जाता है अब तो उसका सुर लग ही नहीं पा रहा था बहुत तन छेड़ने के बाद मार्मिक और करुणा सुर लगा वही रफीक का पुरानागीत ……………… । रिंकी की शादी हो चुकी थी और रिंकी की विदाई का कार्यक्रम जो चल रहा था , विवेक अपने को समझा नहीं पा रहा था यह क्या हो गया ? और सोच रहा था कि एक बार वह उसके प्रति अपनी अनुभूति को एक बार क्यों नहीं बोला ? वह तड़प रहा था उसकी एक नजर पाने के लिए वह आज इतना दिनों बाद बाजार से घर निकला था और उससे मुलाकात हुई और उसकी बारात भी निकल रही थी। रिंकी को देखकर भी अनदेखा करना पड़ा शायद ,वहां पर लोगो की भीड़ थी। दोनों के आंखों में आंसू छलक रहा था । क्या अनदेखा सा मुलाकात था विवेक का यह समय काटे नहीं कट रहा था। वह एकटक कठपुतली की तरह वहां खड़ा रह गया और सोचा की एक बार भी रिंकी को क्यों नहीं बोला।अब तो यादों को सहज कर रखना पड़ेगा । हर किसी को बुरे वक़्त से निकलना है तो आगे तो चलना ही पड़ता है।
आज भी विवेक वही रास्ता से जाना पसंद करता है लेकिन अब विवेक को मधुर नहीं विरह का गाना सुनाई देता है और लगता कहीं दिख जाए -कहीं दिख जाए एक झलक और मन में सद ये बात सताती है कि एक बार बोल क्यों नहीं ।।
गौतम साव