एक बार फिर…
यूं भी तुम हमेशा पास नहीं होते
पर इस बार तुम दूर रहकर ज्यादा करीब हो,
मेरे होंठ खुश्क और लफ्ज़ खामोश हैं
लरज़ते अश्क और मौन पढ़ सको तो पढ़ लेना।
अब तक रात तो यूं भी आंखों में ही कटती थी
पर अब तुम्हारे बिना ज्यादा स्याह लगती हैं,
अबकी बार लौटते समय सुदूर आकाश से
अपने साथ तारों की चांदनी साथ ले आना।
तुम कभी मुझसे कुछ पूछोगे
इस इंतज़ार में बरसों से दिल में जमी,
दर्द की सिल्ली तुम्हारे प्यार की तपिश से
शायद पिघल जाए।
एक अर्ज है तुमसे इस बार
लंबे अंतराल से चल रही समानांतर रेखाओं को
त्रिकोण के बिंदु पर मिला देना और
अपनी सर्द खामोशी को लफ्ज़ों में उतार लाना।
तुम्हें पढ़ना मुझे अच्छा लगता है.