एक बाप की औलाद
सूखा पीपल
हवा का झोका आया
और
खर खर खर
कु आवाज से
पीपल के पत्ते जमीं पर
बिखर गए
अब न मालूम पड़ रहा था
कौन किस फ्लोर का
निवाशी है
किस महंत के सिस्य है
सब एक झुण्ड में तो थे लेकिन
पहचान बस इतनी थी
ये पीपल के पत्ते हैं
आज सब का अहंकार और भ्रम
टूट चूका था
सब जान गए थे
हम इस मुल्क उस मुल्क के नहीं
अपितु
एक बाप की औलाद हैं….
आमोद बिन्दौरी ©®