Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
21 Apr 2020 · 2 min read

एक बगिया की फुलवारी के वह दो फूल![प्रतिकात्मक.प्रसंग]

….. भाग एक- . प्रथम चरण का संदर्भ ! एक बगिया की वह फुलवारी,जो हरी-भरी बहुत ही प्यारी थी,
इस बगिया में खिल आए थे,फूल अनेक! दिखती थी न्यारी सी!
इन फूलों के रुप रंग के साथ साथ, भाव -स्वभाव थे प्रतिकूल!
इस बगिया के माली को भाते थे यह सब ही फूल !
माली इस बगिया का शुभ चिंतक, और अपने बचनो का बंधक !
उसी बगिया का स्वामी भी, नेत्र हीन के साथ ही था विचार हीन!और स्वयं को असमर्थ पाता था ,यही भाव वह जतलाता था! इस बगिया में रहता था,एक पारखी निश्छल स्वभाव का !
जिसके हाथ में काम था,सबको सहिष्णुता के साथ में निर्वाह का! इस बगिया में एक भंवरा आकर ठहर गया , ,
उस भंवरे के मन में था मैल भरा पड़ा !,
वह स्वामी को उकसाने लगा था!
यहाँ फुलवारी में फूल चहकने लगे,और अपनी–अपनी महक बिखेरने लगे ! अब इन फूलों के लिए,निर्धारित करना था इनका स्थान!किस फूल को मिले कौन सा सम्मान !
इस पर तकरार बढ़ने लगी,कैसे सुलझाएं इसे यह समस्या थी बड़ी! तब पारखी ने यह राह सुझाई,इन फूलों में प्रतियोगिता कराई ! अब फूलों की प्रतियोगिता का आयोजन किया गया!
आयोजन में जब एक पक्ष के फूल ने अपने कौशल को दिखाया!
दूसरा पक्ष उसके समक्ष नहीं ठहर पाया !
यह हार दूसरे पक्ष को नहीं भायी थी, तब उन्होंने विजयी हुए पक्ष के लिए एक प्राण घातक योजना बनवाई थी!
इनकी इस योजना को ,पारखी समझ रहा था,
इस लिए उसने इससे बचने का मार्ग ,सामने इनके रखा था!
पारखी का सुझाया मार्ग काम आ गया था ,
इन्हें अपने को जीवित रहने का, अब सामना करवाना था!
देख इन्हें जीवित यह बहुत बौखला गए थे,
अपने किए कुचेश्ठा पर यह नही पछता रहे थे!
माली से लेकर अन्य सभी ने,खुशी थी जतलाई !
अब इन दोनो फूलों के समूहों को,अलग-अलग बगिया थमाई !
एक ओर उन फूलों को दे दी बगिया बनी बनाई,
और दूसरी ओर, इन फूलों के हिस्से में बंजर भूमि थी आई!
बंजर भूमि को इन्होंने,अब खूब सुु्ंदर तरह से सँवारा था,
इनके फूलों की मनोहर छवि से,सारा जग महकता जा रहा था !अब अपनी इस बगिया में इन्होंने, अपनों को वहाँ बुलवाया था,
देख इनकी इस बगिया को, उन फूलों का जी ललचाया था!
इनके लालच ने इन्हें कर दिया मजबूर बहुत ही ज्यादा,
बना लिया तब इन्होंने , इसको पाने का इरादा !
दिया निमंत्रण अपनी बगिया में बुलवाया गया,
और दाँव लगाने के लिए इन्हें खूब उकसाया !
यह फूल थे अच्छे दिल वाले,इन्होंने यह स्वीकार किया,!
नहीं जाना उनका मंतब्य,और बिना सोचे दाँव लगा दिया!!
शेष भाग दो में ………..जारी है!

Language: Hindi
572 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from Jaikrishan Uniyal
View all
You may also like:
सोच और हम
सोच और हम
Neeraj Agarwal
यूं अपनी जुल्फों को संवारा ना करो,
यूं अपनी जुल्फों को संवारा ना करो,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
*पछतावा*
*पछतावा*
DR ARUN KUMAR SHASTRI
😢अब😢
😢अब😢
*प्रणय*
नई खिड़की
नई खिड़की
Saraswati Bajpai
संस्कृति संस्कार
संस्कृति संस्कार
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
...,,,,
...,,,,
शेखर सिंह
नवरात्रि में ध्यान का महत्व। - रविकेश झा
नवरात्रि में ध्यान का महत्व। - रविकेश झा
Ravikesh Jha
उठ जाग मेरे मानस
उठ जाग मेरे मानस
सुरेश कुमार चतुर्वेदी
जो राम हमारे कण कण में थे उन पर बड़ा सवाल किया।
जो राम हमारे कण कण में थे उन पर बड़ा सवाल किया।
Prabhu Nath Chaturvedi "कश्यप"
" संगत "
Dr. Kishan tandon kranti
कदम आंधियों में
कदम आंधियों में
surenderpal vaidya
अनुराग मेरे प्रति कभी मत दिखाओ,
अनुराग मेरे प्रति कभी मत दिखाओ,
Ajit Kumar "Karn"
फ़ना
फ़ना
Atul "Krishn"
हम भी अपनी नज़र में
हम भी अपनी नज़र में
Dr fauzia Naseem shad
मैं पर्वत हूं, फिर से जीत......✍️💥
मैं पर्वत हूं, फिर से जीत......✍️💥
Shubham Pandey (S P)
किससे यहाँ हम दिल यह लगाये
किससे यहाँ हम दिल यह लगाये
gurudeenverma198
मुकद्दर से ज्यादा
मुकद्दर से ज्यादा
rajesh Purohit
अगहन माह के प्रत्येक गुरुवार का विशेष महत्व है। इस साल 21 नव
अगहन माह के प्रत्येक गुरुवार का विशेष महत्व है। इस साल 21 नव
Shashi kala vyas
"" *महात्मा गाँधी* ""
सुनीलानंद महंत
ख़ुद पे गुजरी तो मेरे नसीहतगार,
ख़ुद पे गुजरी तो मेरे नसीहतगार,
ओसमणी साहू 'ओश'
प्रेम के दो  वचन बोल दो बोल दो
प्रेम के दो वचन बोल दो बोल दो
Dr Archana Gupta
"You can still be the person you want to be, my love. Mistak
पूर्वार्थ
*जल-संकट (दोहे)*
*जल-संकट (दोहे)*
Ravi Prakash
3377⚘ *पूर्णिका* ⚘
3377⚘ *पूर्णिका* ⚘
Dr.Khedu Bharti
अदब  नवाबी   शरीफ  हैं  वो।
अदब नवाबी शरीफ हैं वो।
रामनाथ साहू 'ननकी' (छ.ग.)
मजा मुस्कुराने का लेते वही...
मजा मुस्कुराने का लेते वही...
Sunil Suman
सत्य की खोज, कविता
सत्य की खोज, कविता
Mohan Pandey
कम्बखत वक्त
कम्बखत वक्त
Aman Sinha
आत्म मंथन
आत्म मंथन
सुशील मिश्रा ' क्षितिज राज '
Loading...