एक फौजी की माँ की पुकार
लौट आओ अब तुम बीत गए कई साल,
छोटी बहना करती हैं मुझसे कई सवाल।
कब आएंगे मेरे भईया रक्षाबंधन निकल गया,
न कोई संदेशा आया करुणा क्रंदन विफल गया।
पथराई आँखे देंखे रस्ता तेरा हरदम,
कैसे तुझको ये बतलाये न बिन तेरे अब हम।
अफसर बैठे कुर्सी पर हो गए हैं ये जो दागी,
इनका कौन सफाया कर दे शहीद हुए बस बागी।
बगावत की डोर संभाले मिलते हैं आतंकी से,
नेता बनते फिरते हैं जिन्दा हैं ये तुम्ही से।
जनता की रक्षा करने का वादा तो कर देते हैं,
असली रक्षा करने वाले तो देश के सैनिक होते हैं।
तुम बॉर्डर पर गश्त करो ,ये अय्याशी करते हैं,
तुम मरने से नही डरो पर ये मरने से डरते हैं।
अब एक माँ का इंसाफ करो
जो रग-रग में हैं तुम सबकी
इस आतंक को साफ करो
क्यों पैसो के लालच में तुम उनसे हाथ मिलाते हो ,
खुद पीछे हो जाते हो फौजी को शहीद कराते हो।
कंधो से कंधे मिलकर जब ये कदम बढ़ाओगे ,
देश से इस आतंक को जड़ से दूर भगाओगे।