एक फौजी का अधूरा खत…
एक बार उसका खत आया
मगर मैं पढ़ नहीं पाया ,
इधर मेरा आर्डर आ गया
उधर में बॉर्डर पर चला गया ,
वो खत रख्खा रहा
और मैं जंग लड़ता रहा ,
मगर मैं उस खत को पढ़ ना पाया
वह जवाब का इंतजार करती रही
मैं दुश्मन का इंतजार करता रहा ,
मैं अपने साथियों के कंधों पर तिरंगे में लिपटा हुआ आया ,
वो किसी गैरों के कंधों पर डोली में बैठ कर के चले गई
एक बार उसका खत आया
मगर मैं पढ़ नहीं पाया।