“एक फोन”
एक फोन
अचानक मुझे एक फोन आया,मैं दौड़कर मोबाइल के पास पहुँचा क्योंकि आजकल खतरे की घंटी की ज्यादा आशंका रहती है,मैंने कॉल अटैण्ड करते हुए पूछा-”कौन ?” उत्तर मिला, ”अरे! मुझे नहीं पहचाना,तुम्हारे कॉलेज के समय का पुराना मित्र?” ”अरे,भाई!कैसे याद किया?मैंने पूछा।”बस यूँ ही हाल-चाल पूछने।उत्तर मिला।मैंने पूछा-”और सब बढ़िया है? ”हाँ सब बढ़िया है,तुम्हारे यहाँ सब बढ़िया है?उसने संक्षिप्त से उत्तर के साथ प्रश्न किया। मैंने भी छोटा-सा ज़वाब दिया,”हां सब बढ़िया है।”उसने पुनः पूछा-”सच बोल रहे हो न?” मैंने भी ”हाँ,सच बोल रहा हूँ,ऐसा कयों पूछ रहे हो?”मैंने भी उत्तर के साथ छोटा-सा प्रश्न किया।वह आजकल कोरोना जो चल रहा है न इसलिए।उसने ज़वाब देते हुए पुन पूछा,और सुनाओ यार! तुम्हारा क्या चल रहा है?अरे भाई! महामारी कोरोना तो क्या उसका बखान करना जरूरी है,उसके बिना भी तो बात हो सकती है? मेरा सब ठीक है।मैंने प्रश्न के साथ उत्तर देते हुए रुकना चाहा,पर वह बोला,”तुमने सच ही कहा मित्र! लोग एक-दूसरे की चुपचाप सहायता कर रहे हैं,कोई किसी से उस महामारी की भयानकता पर चर्चा नहीं करता,हाँ,उसकी सकारात्मक बातों पर अवश्य चर्चा कर रहे हैं,जिससे हम स्वयं को अत्यधिक सुरक्षित महसूस कर रहे हैं।”मैं बोला,”आप ऐसा क्या कर रहे हैं?” ” बस घर पर हूँ यार! सादा खाना,ईश्वर भजन,आवश्यक काम से बाहर निकलना और मास्क लगाना,किसी से रास्ते में खड़े होकर बात नहीं करना,आवश्यक कार्य करके सीधे घर लौटना,ऐसा लगता ही नहीं कि हम महामारी के काल में जी रहे हैं।उसने संतोष के साथ बताया।”अरे भाई! तो पूरे देश प्रदेश में तो भयानक स्थिति बनी हुई है,इसके लिये तो हमें जिम्मेदारी समझनी होगी?आपस में मानवीय भाव रखते हुए एक-दूसरे की सहायता करनी होगी,कालाबाजारी से दूर रहकर उनको रोकना होगा,कुछ समय का कठिन पल है मित्र! अगर सँभल गये,तो बात करेंगे,पार्टी करेंगे,शादी में बैंड बजवायेंगे,बच्चे स्कूल जायेंगे,पार्क में हम सुंदर नजारा देखेंगे,अपनों से अपनेपन की बात करेंगे,रिश्ते निभायेंगे,बच्चे खेलते हुए,दौड़ते हुए,किलकारी मारते हुए नजर आयेंगे,समय अपनी गति से चलता हुआ कट जाएगा परंतु अभी वक़्त हमें सँभलकर रहने की हिदायत दे रहा है,कुछ दिन सँभल जायें भाई।”मैंने लम्बी-सी बात करते हुए आशा व्यक्त की कि आज नहीं तो कल सब कुछ ठीक हो जायेगा हम सब कोरोना वायरस से जीत जायेंगे।हम पुनः मुस्कुराते हुए चेहरे देखेंगे, समाज समृद्ध होगा,देश प्रदेश मजबूत होगा और हम-सबके सपने पूर्ण होंगे।तुम्हारा साथ चाहिए मित्र! मुझे विश्वास है कि तुम और तुम्हारा परिवार व समाज मेरी बात को गंभीरता से लेगा और देश से कोरोना नाम का राक्षस हटेगा और रिश्तों में पुनः मिठास घुलेगी।अभी फोन रखता हूँ।इतना कहकर मैंने बातचीत को विराम दिया।
मौलिकता प्रमाणपत्र
मैं प्रमाणित करता हूँ कि ‘कहानी प्रतियोगिता’ हेतु प्रस्तुत कहानी मौलिक,अप्रकाशित एवं अप्रसारित, हैं।
भवदीय-प्रशांत शर्मा ‘सरल’,नरसिंहपुर (म.प्र.)
मो.9009594797