एक प्रेम ऐसा भी,
मां , मुझे खिला कर ,
सोई भूखे पेट,
दर्द से टुट रह था पुरा बदन,
फिर भी पापा मेरे मुस्करा रहे थे
कहीं रह ना जाए कमी किसी चीज,
हर वक्त मन में यह डर ,
उनके सता रहा था ,
इस निश्छल प्रेम को छोड़,
कोई अपमान करे अपने को,
किसी पराए के खातिर,
कैसा बवकूफ होगा वह ।
इस प्रेम का जग में कोई तोड़ नहीं,
वह बदनसीब ही है,
जो संजोग कर ना रख सके इसे।।