एक प्रेत जागता
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एक प्रेत जगा अभिलाषाओं का ।
कुछ मृत अस पिपासाओं का ।
आ बैठा है जो कांधों पर ,
प्रश्न पूछता आधे छूटे वादों का ।
ले मौन चला मंज़िल अपनी ,
मन फ़ौलाद इरादों का ।
मार दिए जो सपने उसने अपने ,
पैरों की ख़ाक उड़ाता सा ।
.@ विवेक दुबे”निश्चल”.