एक प्रश्न
आज बस में बैठे-बैठे
बाहर बस स्टैंड पर खड़े उसे देखा
क्षीण काया, चांदी से बाल
एक छोटा बैग हाथ में लिए
पैरों के बाहर खड़े होने में असमर्थ
जमीन पर ही बैठी
कमज़ोर निगाहों से बस की प्रतीक्षा करती
वह 65 या शायद 70 की अवस्था वाली साँवली से स्त्री।
बीच में ही थक कर उठ गई
आंखों की खामोशी बयां कर रही थी
उसका नितांत अकेलापन
मन में प्रश्न उठा-
इस उम्र में किस दिशा में जा रही है?
बिल्कुल तंहा।
कल्पना में एक छोटा सा बालक दिखा
उसकी अंगुलियां पकड़े।
‘दादी दादी’ का तोतला स्वर सुन
झुर्रियों से भरा मुस्कुराता चेहरा उसका।
पर यह तो सत्य नहीं
क्यों इस तरह बुढ़ापा है उसका?
जवाब तलाश ही रही थी कि
आगे चल पड़ी बस मेरी
वह वृद्धा रह गई पीछे
वहीं, उसी तरह प्रतीक्षा में खड़ी।