एक पैग़ाम ( ग़ज़ल )
मैं चल दिया इस दुनिया छोड़ के
पता नहीं मुझे , कहाँ जाऊँ मैं ?
कोई पूछा भी नहीं , मुझसे भी
ठिकाना तेरा कहाँ है , कबसे ?
मेरी कहानी ख़्वाबों की गस्ती
कितनी दिलकशी रङ्गीन पुरानी !
पलकों से लगी मेरी जुगनू प्यारी
मेरी तड़पन से लगी कम्पकम्पी दीवानी
आँसू मेरे अंगारे न पूछे कोई
ख़्याल भी मेरे मञ्ज़िल भी टूटी
शब्द – शब्द का मारा , खता मेरी
कैसे बताऊँ मैं तुझे दर्द कहानी ?
भूल भी न पाऊँ मैं ज़िन्दगी तमन्ना के
मुसाफ़िर बञ्जारे बना ज़िन्दगी के
वक्त के मुलज़िम बन चला कबसे
स्वप्न भी मेरी बिखर गयी तबसे
ज़ख़्म भी बेवजह कराह रही
अब किस किसको मैं दस्तूर बताऊँ ?
दर्द से तड़पन मेरी कैसे सुलगती ?
इकरार भी अब कैसे छुपाऊँ रब से ?
मुझे एक पैग़ाम ला दो समन्दर से
एक घूँट भी जहर का पी लूँ मैं
श्मशान हो चला मेरी धड़कनें
हो जाऊँ अदृश्य मैं इस जग से