एक पुरूष का प्रेम…
एक पुरूष का प्रेम …
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कहते हैं कि, एक पुरूष सिर्फ एक ही बार सच्चा प्यार करता हैं,
उसके बाद वो कभी किसी को वो प्यार नहीं दे पाता,
लेकिन वो खुद भी नहीं जानता के उसे सच्चा प्यार कब होता हैं ,
और वो कौन हैं जो उसके लिए दुनिया में सबसे खास होता हैं….
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जब एक पुरूष इस प्रेम के अस्तिव में प्रवेश करता हैं ना तब उसकी पहली मुलाकात उस स्त्री से होती हैं जिसने उसे जन्म दिया होता हैं, और वो उसे माँ कहता हैं….
पुरूष को लगता हैं के यहीं उसका पहला प्यार होता हैं, उसकी माँ से ही उसका लगाव होते जाता हैं…
मगर उसने तो माँ को सिर्फ उसकी कोख में महसूस किया होता हैं, और जन्म के बाद धीरे -धीरे समझ और दुनिया के कहे सुनने पर माँ को सम्मान और अपनापन देते जाता हैं,
और वक्त के साथ चलते चलते इसी को प्यार समझने लगता हैं…..
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फिर उसका परिचय उसके जिवन के अगले पड़ाव के स्त्री से होता हैं….जिसे वो पत्नी या प्रेमिका भी कहता हैं….
उन दोनों की नजदिकीयाँ उसे महसूस कराती हैं कि माँ के बाद वो किसी से प्यार करता हैं तो उस स्त्री से ही,
याने उसके जिवन से उसकी माँ के प्रेम के अस्तिव को
अब सिर्फ प्रेम कहलाने उद्देश से ही उसके जिवन में समाविश रहता हैं…….
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अब वक्त के अगले चरन में पुरूष अपने कदम बढा़ता हैं,
एक बेटे से उसके पिता बनने का सफर पुरा करता हैं,
जब एक स्त्री उसकी अपनी बेटी के रूप में उसके हाथों में होती हैं….उसके आँखों से आँसू कब छलक जाते हैं उसे खबर भी रहती..क्यूँ कि उसका अंश उस पुरूष का अस्तित्व आज उसके अपने हथेलियों को छूँ रहा होता हैं….
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पुरूष जन्म लेता हैं तब भी रोता है, वो प्रेम से नहीं सिर्फ अपनी माँ को जताने के लिए के उसे भूख लगी हैं…
पुरूष अपनी प्रेमिका के प्रेम विरह में भी रोता हैं ,क्यूँकि उसे पता होता हैं वो उसे नहीं पा सका, और कोई और उसे पा गया,
इस प्यार में एक इर्शा भी हैं,
ये कह सकते है …..
पुरूष अपनी जिम्मेदारियों के टूटते भी रोता हैं……
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लेकिन जब उसकी बेटी उसके हाथों में होती है,
उसके नन्हें नन्हें हाथों से जब वो पुरूष को छुती हैं ना, तब जाकर पुरूष में सच्चा प्रेम उत्पन्न होता हैं…..
उसे महसूस होता हैं कि, यही उसके जिवन का सबसे बड़ा दिन हैं,
उसी क्षण से ही उसके अंदर एक स्त्री के लिए अलग भावना उत्पन्न होती हैं….
अगर उस पुरूष की माँ नहीं हो तो उस बेटी को अपने माँ सी इज्जत देता हैं,
और प्रेमिका से विरह वाला पुरूष उसे प्रेमिका सा प्यार देता हैं क्यूँ कि उसे लगता हैं कि वो ही उसका सच्चा और पहला प्यार थी,मगर इस प्यार में पुरूष का कोई स्वार्थ नहीं होता…
जो पुरूष बचपन से लेकर अब तक अपनी चलाता था, पहली बार उसे उस बेटी रूप स्त्री के सामने झुक जाना पड़ता है,
जो हर बात पर रूठ जाया करता था, अब मुस्कुराना सीख जाता हैं….
हरपल अपने जिवन के मौल्यवान वस्तु सा उसे सँभाल लेता हैं,
जानता है एक दिन छोड़ ही जाएगी, फिर भी नि:स्वार्थ रूप से उसे जिवनभर प्रेम करता रहता हैं……
हर एक वस्तू अपनी माँ और प्रेमिका से पहले अपनी बेटी लिये चुनता हैं….
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उम्र गुजर जाती हैं इस प्रेम के पीछे…
फिर भी पुरूष कभी यह नहीं जान पाता हैं कि,
“”यही वो स्त्री हैं ,जिसे पुरूष पहला और आखरी प्यार करता हैं”””””…….
#ksमाधवामहादेवा?