एक पीर उठी थी मन में, फिर भी मैं चीख ना पाया ।
एक पीर उठी थी मन में, फिर भी मैं चीख ना पाया ।
सब पीट रहे थे जिसको, अब तक वो लीख ना पाया ।।
मॉं, तेरी शिक्षा ने, मुझको बना दिया “आचार्य” ।
पर देखो विधि का लेखा, मैं तुझको सीख ना पाया ।।
✍️ आचार्य वृन्दान्त ✍️