एक पिता की विलासिता से दुखी पुञ की व्यथा पर गेहलोत की कलम
ऐ मेरे जनक तु मुझे न कर बर्बाद ,
न करो तुम विलासिता में अपनी पूंजी बर्बाद ,
न करो बर्बाद यु पूंजी पूर्वज रोये ,
रोये पूर्वज और अग्रज अपना दुख किसे बखेरे ,
किसे बखेरे अपना दुख यु अर्ध्दागिनी ,
जिसने ली है सात जन्म तक साथ निभानी ,
दुखी है तेरे सुत गेहलोत यह जानी ,
व्यथ्ाित है तेरे पौञ और नाती नातिन ,
भुलकर अपने अतीत को जीना चाहे ,
बडे ही वेदना से भूल रहे वो अपना अतीत ,
अतीत के कालचक्र में हो गया उनका सब कुछ बर्बाद ,
उनका सब कुछ बर्बाद बस बचा यह जीवन ,
तुम्हारी यह विलासिता जीवन करे बदहाल ,
बदहाली के इस जीवन में जीना हुआ दुश्वार ,
दुश्वार कर दिया जीवन अपना ,
की अपनो की जिंदगी हलाल ,
हलाल करने वाले अपनों की जिंदगी मत लील,
हो रहा नीवाला अपनों का दुश्वार ,
दुश्वार हो गया अन्न जल अपनों का गैर करे उपहास,
गैर करे उपहास न करो कभी ऐसे काम,
करके ऐसे काम से अपनों की नीदें हराम ,
हराम हो गई नीदें अपनों की गैर करे है मौज ,
ऐ मेरे जनक तु मुझे न कर बर्बाद ,
न करो तुम विलासिता मे अपनी पूंजी बर्बाद ,
भरत गेहलोत
जालोर राजस्थान
सम्पर्क सुञ 7742016184