एक पहल – तू मत निकल
एक पहल : तू मत निकल
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स्वनाश कर रहा है तू
विनाश कर रहा है तू
अपने इस समाज को
हताश कर रहा है तू
मत निकल तू मत निकल।
रात हो या प्रात हो
स्वर्णिम प्रभात हो
कोई संग हो ना साथ हो
घर में रहे तू रात दिन
न हो विकल न हो विफल
मत निकल तू मत निकल ।
आवेश में ना लांघ तू
रेखा दहलीज की
कोविड हर ले जाएगा
प्रीति प्रियजनों की
रह संभल तू रह संभल
मत निकल तू मत निकल ।
गगन को भी भेद ले
बड़ा शक्तिमान तू
मन को भेदने में
क्यों बना भ्रांतिमान तू
बन सबल तू बन सबल
मत निकल तू मत निकल ।
समाज में कोई रोए ना
महाविनाश होए ना
इस कलंक कथा का
ना सूत्रधार बन तू
न भूल कर न भूल कर
मत निकल तू मत निकल।
कंचन प्रजापति
प्रयागराज, उत्तर प्रदेश