एक पहल-जनहित में जारी
हमारा भारत देश बुद्धिजीवियों का देश रहा है, जिसमें खासकर हर किसी की सोच देश को बुलंदियों की ओर ले जाने की रही है। परंतु विचारणीय बात ये है कि क्या करोड़ों की आबादी में से कुछेक लोग या संस्थाएँ समाजहित के कार्यों को बढ़ावा दें और शेष जनता केवल आपस में बातचीत करने या टाइमपास हेतु समाज-सुधार की या नवक्रांति की चर्चा करें तो क्या इससे देश में नए आयाम स्थापित हो सकेंगे? एक कहावत के अनुसार ‘छाया हर किसी को चाहिए, परंतु पेड़ कोई लगाना नहीं चाहता’ आज देश के वैज्ञानिकों ने जो ई-कॉमर्स के माध्यम से ‘डिजिटल इण्डिया’ बनाने के प्रयास में अपना अथाह सहयोग प्रदान किया है, वह कहने-सुनने से परे है। आज देश के बच्चे-बच्चे के पास देश-दुनिया की खबर मात्र चंद सैकिण्डों में पहुँच जाती है, जिसका ऋण हम हमारे देश के महान् वैज्ञानिकों को कतई नहीं चुका सकते।
देश की बागडोर संभालने वाले देशभक्त तथा ईमानदार राजनेताओं द्वारा देश में बदलाव लाने की पहल, घर-घर तक अति-आधुनिक सुविधाएँ पहुँचाने एवं जन-कल्याण के कार्यों का भी हम ऋण नहीं चुका सकते, किंतु बात वही आती है कि मात्र चंद लोग देशहित में अपना जी-जान लगाएं और अन्य लोग दफ्तरों, घरों चोपालों या अन्य स्थानों पर बैठकर केवल टी.वी., रेडियो, समाचार पत्रों या अन्य माध्यम द्वारा देखी-सुनी खबरों पर चर्चा करें और फिर अपने कार्यों में लग जाएँ तो क्या देश में वे सुधार आ सकते हैं जिनकी हम लंबी-चौड़ी चर्चा करते हैं?
बहुत पुरानी कहावत प्रचलित है, ‘ज्ञानचन्द व रायचन्द हर चौराहे पर मिल जाएंगे, लेकिन करमचन्द तो कहीं-कहीं ही मिलेंगे।’ मेरा तात्पर्य किसी पर व्यंग्य कसना नहीं है, लेकिन जो सत्य है उससे हम कन्नी भी नहीं कतरा सकते। आज हम ‘डिजिटल इण्डिया’ में रह रहे हैं, हर किसी के पास स्मार्ट फोन हैं, उनमें इंटरनेट की सुविधा तो बखूबी ही होती है। जिसमें सोशल मीडिया पर हर समय देश-दुनिया की खबरें मिलती हैं। जिनसे बहुत स्थानों पर कई लोगों का भला भी होता है, लेकिन उनकी गिनती बहुत कम है, क्योंकि आज की भागदौड़-भरी जिंदगी में अधिकतर लोगों के पास उस मैसेज या समाचार को पूरी तरह से पढऩे का समय भी नहीं है। लेकिन उस मैसेज को थोड़ा-बहुत पढऩे पर ही वे आगे फॉरवर्ड जरूर करते हैं।
क्यों न हम किसी और को कहने के बजाय स्वयं से ऐसी शुरूआत करें, जिससे हमारे छोटे-से प्रयास से किसी-न-किसी को फायदा पहुँचे। आज हर जगह चाहे वह स्कूल-कॉलेज हो, कोई संस्था हो, सरकारी-अर्द्धसरकारी संस्थान या गली-मौहल्ले के चौराहे, लगभग हर जगह देशहित व मानवताहित संदेश लिखे मिल जाते हैं। जिन्हें हम पढ़ते हैं, आगे भी बताते हैं लेकिन विचारणीय पहलू ये है कि क्या हम पहले स्वयं उन बातों पर अमल करते हैं, जिन्हें हम दूसरों को मनवाने की उम्मीद करते हैं।