एक परदेशी
क्या हुआ अगर मेरा मकान कच्चा है
मुझे बखूबी पता है कि मेरा इमान सच्चा है
भरोसा होता मुझपे तो यूं इल्जाम न लगाते
पर किन्हीं आशाओं से खुद को बांध रखा है
मुफलिसी के साथ भी मैं बेहद खुश हूं
मैंने अपने दिल को अमीर वना रखा है
लहू अभी भी लाल है पानी नहीं हुआ
मैंने जरूरत के लिये संभाल रखा है
मेरे अपनो की जरूरतें कुछ ज्यादा थीं
मैने अपनी ख्वाहिशों को दवा रखा है
मुझे शौक नहीं है अपनों से यूं दूर जाने का
पर सर पे जिम्मेदारियों का बोझ जो रखा है
स्वाभिमान नहीं बेचा परदेश को चला आया
पर अपना ईमान हमेशा जिंदा रखा है
वेखॉफ शायर-
राहुल कुमार सागर
“बदायूंनी”