एक पत्र बच्चों के लिए
बोलती
*लिखता तुमको यह पत्र, एक उम्र बाद, बूढ़े बच्चे बन जाते हैं
और बच्चे पेरेंट्स बन, वही भूमिका परवरिश निभाते हैं।
*तुम दोनों हैं जन्म से साथ, जीवन में दो और बच्चे जुड़ गए
परिवार जुड़ कर हमारे घर का अभिन्न हिस्सा बन गए।
*कुछ कमियां… तो रह ही जाती, मैं भी तो था पिता नौसिखिया नया नया
आज मैं बच्चों से सॉरी…बोलना चाहूं, समझूं तुमने माफ किया।
*उम्र के उस दौर में हैं, जब कहते कि, फिर से बच्चा बन जाते हैं।
या अड़ियल, खड़ूस जो हमेशा खुद को ही सही ठहराते हैं।
*दिल तो बच्चा है जी……. अब तुम मुझे बच्चा ही समझना।
और तुम बच्चे! … मेरे मातापिता, इसी तरह व्यवहार करना।
*हो सकता है कि मैं छोटे बच्चे की तरह खाते, पहनते समय कुछ गिरा दूं
या सब्र ना कर पाऊं, कहीं जाते वक्त उतावला हो जाऊं
*धैर्य से पेश आना,गुजारिश है,अगर कभी सामंजस्य ना बिठा पाऊं
मुझ पर खीझना भी नहीं, उम्र के साथ याददाश्त भूलने लग जाऊं
*या अच्छी तरह से उठ बैठ नहीं पाऊं तो तुम झुंझलाना भी नहीं।
और तुम मेरे साथ बैठ कर … दो मिनट बात करोगे, भागना भी नहीं।
*यही सबसे बड़ी … खुशी भी होगी, उम्र की परिपक्वता ने समझा दिया
हमने सदा तुम्हें अपना the best देने का प्रयत्न ही किया।
*हो सकता है मैं और तुम्हारी मां समय के साथ सामंजस्य नहीं बिठा पाएं,
और एक दिन ऐसा आए कि चलने से मजबूर कभी शरीर से भी लाचार हो जाएं
*तो तुम चार कदम साथ जरूर चलना, यही मेरी सबसे बड़ी पूंजी होगा।
एक उम्र के बाद समय व्यतीत करना, वाकई बहुत मुश्किल होगा
*मरने की बातें करने लगें, इन सब बातों से तुम परेशान नहीं होना।
यह भी जिंदगी का हिस्सा है…उसी की तैयारी, तुम तैयार रहना।
*Be brave…. उम्र का यह पड़ाव, तुम्हारी मुस्कुराहट ही हमारा सहारा है।
वृद्धजन बोझ नहीं, ज्ञान का भंडार, अमूल्य निधि सम्मान तुम्हारा है।
___ तुम्हारा वृद्ध पिता