एक पगली लड़की
सुनो
एक पगली सी लड़की
तुम्हे बहुत चाहती है
तुम सिर्फ उस के हो
ये सोच के इतराती है
बेइंतहा कोई किसी को
चाहे ये मुमकिन तो नही
बस खूबसूरत से ख्यालों
में डूब जाती है
दर्द की हर एक
दास्तां वो तुम्हारे साथ
हो कर भूल जाती है
यूँ तो जमाने मे भला
कौन किसी का साथ देता है।
फिर भी ना जाने कौन सा
रिश्ता है जो वो तुमसे
निभाये जाती है।
गुमसुम सी रहती है
अपनी ही ख्यालों की
दुनियाँ में कही वो
एक प्यार का आशियाना
तुम्हारे दिल मे सजाये जाती है।
एक पगली सी लड़की
सोच के उन लम्हो को
वेवजह ही मुस्काये जाती है
गुम हो जाती है अपनी
सजायी इस दुनियाँ में
तुम्हे अपना हमसफ़र
वो बनाये जाती है
एक पगली सी लड़की
आज फिर वेवजह ही
क्यों ना जाने मुस्कुराये
जाती है।
कितनी मासूम है
उस की मुहब्बत की
बदले में वो तुम से
कुछ नही बस दो
मीठी प्यारे बोल
ही मांगे जाती है।
तुम ना समझोगे कभी
उस को ये वो भी
जानती है मगर
बस तुम्हे अपने
प्यार का अहसास
दिलाये जाती है।
वो पगली लड़की
बिन कुछ कहे
बिन कुछ सुने
एक नगमा
एक तरन्नुम सी
गाये जाती है।।
संध्या चतुर्वेदी
मथुरा उप