एक पंछी
एक पंछी पिंजरे के इस पार आना चाहता है!
वो भी तो एक खुला आसमान पाना चाहता है!
चाहता है वो भी उन्मुक्त गगन की हद देखना!
साथ ही वो चाहता है अपना भी कद देखना!
सोचता है इन परों में जान बाकी है कि नहीं!
उड़ने का कोई भी अरमान बाकी है कि नहीं!
लेकिन बेजुबान ये देखो बहुत लाचार है!
मनुष्य का पंछियों से कैसा ये व्यवहार है!
कब तलक होते रहेंगे जुल्म इन पर बोलिये!
चुप से क्या हासिल है कोई तो अब मूहँ खोलिये!!