एक नज़्म जब हमने लिखी
जब एक नज़्म हुमने लिखी
तारों की बारात थी जिसमे सजी,
चाँद की थी चाँदनी,रात जैसे दुल्हन बनी,
आँखों मे थी चाहत की जैसे रोशनी,
जब एक नज़्म हुमने लिखी !
वक्त यूं ही ढलता गया,बुझ गई शमां कहीं,
दो लब्जों की थी वो कहानी, मगर खत्म होती नहीं,
किसी के साथ की थी वो कहानी,
जब एक नज़्म हुमने लिखी !
कोरे पन्नों पे ना जाने कितने शब्दों की अठखेलियाँ,
बुनते उलझते रिश्तों की पहेलियाँ,
रह गई बातें जो रूठी मनानी,
जब एक नज़्म हुमने लिखी!
एक ठोकर लगी आँख जैसे खुल गई,
तोड़कर सारी दुनिया की रस्में,तुझमे कहीं मैं खो गई,
बात हुई बीती और पुरानी,
जब एक नज़्म हुमने लिखी !!