एक नारी की वेदना
एक नारी की वेदना
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लड़ाकर तुमसे नैना,मै तो फस गई,
तेरी मन मोहनी मूरत मन में बस गई।
ग्रीष्म ऋतु जाकर,शरद ऋतु आ गई,
तेरी प्रतीक्षा करते करते,मै तो थक गई।
आ जाओ मेरे सनम,रात बहुत हो गई,
जगते जगते सारी रात,यूंही कट गई।
आता नहीं चैन,अब तो भीगी भीगी रातो मे,
बिन घटा के ये बदली अब तो बरस गई।
आ जाओ,अब तो सारी सीमाएं पार हो गई,
बिन देखे तुमको,ये अंखियां अब तो तरस गई।
आर के रस्तोगी
गुरुग्राम