एक नारी की पीड़ा
दिन की रोशनी,ख्वाबों को बुनने में गुज़र गई,
रात की नींद,बच्चो को सुलाने में गुज़र गई।
जिस घर में मेरे नाम की एक तख्ती भी नही,
मेरी सारी उमर,इस घर को सजाने में गुजर गई।।
बच्चे मैने पैदा किए,नाम पिता का मिला,
मायके में मै पली,गोत्र सुसराल का मिला,
सारी जिंदगी घर को ही मै संभालती रही
आखिर में मुझको दो गज कफन मिला।।
बेटा जिसे पाला था वह भी दूसरे का हो गया,
शादी होते ही वह भी बहु का गुलाम हो गया।
मेरी किस्मत में कोई भी सुख न लिखा था,
जिसे अपना समझा था वह दूसरे का हो गया।।
आर के रस्तोगी गुरुग्राम