एक नन्ही सी चींटी हूँ मै..
सतर्क हूँ,
सावधान हूँ मै,
चौकन्नी
और फुर्तीली,
छोटी हूँ,
पर अपने से तिगुना बल ढोती हूँ,
पहाड़ों पर चढ़ती,
धरती के भीतर चलती,
गिरती,
खुद सम्भलती,
उठती,
फिर आगे को चलती,
अकेले में,
या हो मेले में,
अपनी मंज़िल की ओर
अग्रसर,
धीमे-धीमे,
छोटे -छोटे कदम रखते,
चाहे फिर मौसम बदले,
या समय करवट ले,
अपने निश्चय पर स्थिर,
अडिग और दृढ़,
धीर,संतुलित,
निकली हूँ खुद को करने साबित,
पत्थरों को छेद दूँगी,
अड़चनों को भेद दूँगी,
नही हूँ मुखर,
किंतु हूँ प्रखर,
ऊँची दीवारें लांघ कर,
बाधाएँ सारी फांद कर,
गगनचुंबी मीनारों पर चढ़
उनको जय कर,
हाथी से बलशाली को दे मात,
चलती चलूँ मै दिन और रात,
मंज़िल को पाकर ही दम लूँ,
सुस्ताऊँ या थम लूँ,
खुद ही अपनी मीत हूँ मै,
निरंतर गूंजता गीत हूँ मै,
खुद्र सी आपबीती हूँ मै,
एक नन्ही सी चींटी हूँ मै….।।
©मधुमिता