एक नज़्म _ सीने का दर्द मौत के सांचे में ढल गया ,
2 अक्टूबर गांधी जयंती के शुभ अवसर पर
इन पंक्तियों को समर्पित करती हूँ ..
नीलोफर खान …
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सीने का दर्द मौत के सांचे में ढल गया ,
तुम क्या गये कि कौम का चेहरा बदल गया ..
सींचा था तुमने जिस ज़मीं को अपने खून से,
उस सरज़मीं के सर का ही सेहरा बदल गया .
सब बंट रहे हैं जातियों के नाम पर यहाँ ,
नेता भी हो गए हैं बड़े स्वार्थी यहाँ ..
किसकी मजाल है कोई अब क्रांति करे ,
तोड़े हुजूम जुल्म का और शांति करे ..
वीरों को जन्म देने का लहजा बदल गया ,
‘आजाद ‘ तेरे देश का इंसाँ बदल गया …🙏
शिक्षा के नाम पर सभी व्यापार ही करें ,
विद्यार्थी गुरु का तिरस्कार ही करें ..
थैले मे भर के नोट दें तब नौकरी मिले ,
नोटों की हो कमी तो कोई छोकरी मिले ..
आँखों से एतबार का पर्दा उतर गया .
‘नेहरू’ तुम्हारे देश में क्या क्या बदल गया …🙏
गीता रही ना हाथ में खादी भी खो गया ,
पढ़ते हैं सब वकालत इंसाफ सो गया …
बूढों की ना हिफाज़त , ग़रीबों का ना भला ,
नफ़रत की आग से सभी का है घर जला…
लोगों में जोश होश का जज्बा किधर गया
‘गांधी’ तुम्हारे देश का नक्शा बदल गया . 🙏
✍️नील रूहानी .. 02/10/2024,,,
( नीलोफ़र खान ,)