एक दोहा दो उद्धरण
भौतिक देश नश्वर है,
पाया न कोई जीत.
कोकिला कूकै थी.
सब की थी वो मीत.
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कुछ लोग कीचड़ फेंकने
की जगह नहीं ,
मौका देखा करते है.
जिम्मेदारी लेने की बजाय
व्यक्ति और मौका खोजते है.
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दिनभर सोने वाले आदमी,
रात को कोई दिखता नहीं.
पूछते हैं कहाँ पहुंच गये .
लोग कहते हैं जा सो जा.
रात बहुत हो गई .
देशहित राष्ट्रवाद में अक्सर लोग देख नहीं पाते.