एक देशभक्त की अभिलाषा
रचना नंबर (4)
विधा… गीत
एक देशभक्त की अभिलाषा
*तेरी गोदी में
माँ सो जावाँ*
जिस माटी में मैं बड़ा हुआ
लटपट हो मुझको बल मिला
ये वजूद मेरा आबाद हुआ
उस माटी में मैं मिल जावाँ
वन,उपवन,बगिया में खिल जावाँ
तेरी गोदी में माँ सो जावाँ
जिन नदियों ने नहलाया
मेरे बचपन को बहलाया
मेरे सपनों को सहलाया
गंगा जल माँ मैं बन जावाँ
नीला आँचल माँ नदी का लहरावाँ
तेरी गोदी में माँ सो जावाँ
जिन खेतों में मैंने हल जोता
बाबा संग बीजों को बोता
पीपल की छैया में सो जाता
उन खेतों में फिर मैं मुस्कावाँ
धानी चूनर माँ धरा को ओढ़ावाँ
तेरी गोदी में माँ सो जावाँ
जिन शिखरों को मैं लांघा
हर दुश्मन को मैं काटा
अंगारा बन कर दहलाया
तिरंगा इक बार मैं फ़हरावाँ
अपने लहू से हिंदुस्तान लिख जावाँ
तेरी गोदी में माँ मैं सो जावाँ
स्वरचित
सरला मेहता
इंदौर