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29 May 2024 · 1 min read

एक दीप तो जलता ही है

चाहे नाव रहे अर्णव में
चीखें दबी रहें कलरव में
उभचुभ सत्य रहे रौरव में
पांडव घिरे रहें कौरव में
एक दीप तो जलता ही है, आशा का, आखिर आख़िर तक

पत्ते पे पत्ता चल जाए
या सत्ते पे सत्ता
दुनिया भले निराली होवे
बात रहे अलबत्ता
मन में लौ विश्वास का लेकिन, दीपता है आख़िर आख़िर तक।

घहर-घहर घनघोर घटाएँ
घिर-घिर आएँ दशों दिशाएँ
मुण्ड-मुण्ड से टकरा जाएँ
लप-लप करतीं अनल शिखाएँ
दूर क्षितिज के अंक में तारा, दिखता है आख़िर-आख़िर तक।

सुनो, हार कर मरने वालों!
हृदय थामकर जलनेवालों!
‘हम तो हुए बर्बाद, हाय राम!’
भाग्य पीटकर कहनेवालों!
जीवन का यह खेल निराला, चलता है आख़िर-आख़िर तक।

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