Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
30 Nov 2023 · 10 min read

एक दिवाली ऐसी भी।

एक दिवाली ऐसी भी।
अमावस्या की उस रात में सारा शहर रौशनी की चमक-धमक से जगमगा रहा था। हर तरफ रौशनी से सजे-धजे घर और मुस्कराहट और खुशियों से दमकते चेहरे थे। दिवाली की आतिशबाजियां एक क्षण के लिए भी शहर को सूना नहीं होने दे रहीं थी। जहां एक ओर शाम होते हीं लोगों के घरों में दिवाली की पूजा के शंख बज रहे थे, वहीँ दूसरी ओर उसी शहर की एक गली में अवस्थित जीवन हॉस्पिटल के आई.सी.यू में बीप-बीप की आवाज के साथ एक वृद्ध की साँसें चल रहीं थी। यूँ तो त्योहारों का मौषम था, और इसी वजह से अस्पताल में भी नियमित से काफी कम लोग थे। आई.सी.यू से लगा वो लम्बा-चौड़ा सा गलीचा जिसमें धीमी रौशनी वाला बल्ब टिमटिमा रहा था, बिलकुल हीं सूना पड़ा था। आहट थी तो बस किसी के क़दमों की। उस धीमी रौशनी में अपनी हीं मद्धम परछाई को देखती हुई ध्वनि, शून्य भाव एवं शून्य नजरों से चहलकदमी कर रही थी। हर बढ़ता कदम उसकी धड़कनों की गति को और भी बढ़ा रहा था। दुख भरे क्षण अपनी विशेषता से विवश होते हैं, वो सकारात्मकता नहीं अपितु नकारात्मकता वाले विचारों की अधिकता बढ़ा कर इंसान को और भी भयभीत किये रहते हैं। ध्वनि का मन भी किसी अनहोनी के अंदेशे से बैठा हुआ था।
यूँ तो ध्वनि का जीवन पहले से हीं अकेलेपन के अंधकार में डूबा हुआ था, माता-पिता की इकलौती संतान होने की वजह से प्यार दुलार और परवरिश में कभी कोई कमी नहीं रही, पर कोई भाई-बहन ना होना उसे कभी -कभी बहुत हीं ज्यादा खलता था। युवावस्था में हुई शादी और घरेलु-हिंसा ने उसे तलाक के दरवाजे पर लाकर खड़ा कर दिया। दिल का टूटना और सपनों के घर के धराशाही होने से रिश्तों पर से उसका विश्वास जाने कब का उठ गया। एक सफल ग्राफ़िक डिज़ाइनर और एक बेटी होने के अलावा उसे अब किसी और पहचान की चाहत हीं नहीं रही थी। उसकी इस नयी दुनिया में उसके माता – पिता और उसके काम के अलावा और कुछ भी नहीं था। पहले से हीं चरमराई हुई ज़िन्दगी और अब अचानक से वृद्ध पिता का इस तरह गंभीरता से बीमार हो जाना, उसके मृदु मन पर एक अंतहीन प्रहार था।
बाहर होती आतिशबाजियों की आवाजें ना जाने उसकी कितनी हीं यादों को सजीव कर रहीं थी, दिवाली ये तो उसका सबसे प्रिय त्योहार हुआ करता था। बचपन से हीं दीयों की रौशनी उसे बहुत भाति थी और साथ में घर में बनने वाली वो रंगोली, जिसके रंगों में जीवन की अटखेलियां देखने को मिलती थीं। उसके तीस वर्षों के जीवन के सफर में ये उसकी वो पहली दिवाली थी जो उसने बिना दीयों की रौशनी के गुजारी थी। पिछले दस दिन और दस रातें यूँ हीं इसी गलियारे में टहलते हुए काटी थी, ध्वनि ने। एक दिन थोड़ा सुकून मिलता तो बस दूसरे हीं क्षण उसके पिता की हालत फिर से गंभीर हो जाती।
सन्नाटे में खुद के ख्यालों में डूबी ध्वनि का ध्यान तब भंग हुआ जब अचानक से अस्पताल में भागदौड़ और शोरशराबे की आवाजें आयीं। अपने क़दमों को उसने उन आवाजों की दिशा में मोड़ा और अस्पताल के कैजुअल्टी विभाग तक आ पहुंची। कई सारे अस्पतालकर्मी उस कमरे में भरे हुए थे और तत्काल आये मरीज को घेर कर खड़े थे। वहीँ अस्पताल के मुख्य प्रांगण में चीख-पुकार लगी हुई थी। कुछ लोगों के बातचीत की तो कुछ महिलाओं के रोने की आवाजें भी उस सुनी रात में गूंज रही थी। ध्वनि ने पास से गुजरती हुई नर्स कंचन से पूछा,
“क्या हुआ? मरीज बहुत गंभीर है क्या?”
कंचन ने हड़बड़ी में कहा,
“अरे दीदी, वो एक्सीडेंट हुआ ना तो पति-पत्नी दोनों की हालत ख़राब है।”
ये बोलती हुई कंचन, ध्वनि के सामने से निकल गयी। कई दिनों से अस्पताल में रहने और अपने मिलनसार स्वाभाव की वजह से अस्पतालकर्मी ध्वनि के साथ घुलमिल गए थे। ध्वनि ने एक गहरी सांस ली और फिर अपने चारों तरफ फैले अस्पताल की सफ़ेद दीवारों को देखा, कोरे रंग की फीकी सी दीवारें, जाने कितने दर्दों की गवाह थी ये दीवारें। कितनी हीं चीखें हर दिन इनसे टकराती और दम तोड़ती है, और ये निर्भीक सी निशब्द सी बस मूकदर्शक बनी रहती हैं। अपने भटकते विचारों को समेटती हुई ध्वनि अस्पताल के प्रतीक्षालय से होकर गुजर रही थी, कि तभी किसी ने उसका हाथ पकड़कर उसे अपनी तरफ खींचा। ध्वनि ने पलट कर देखा तो एक छह-सात साल की बच्ची ने उसके हाथों को थाम रखा था। उस बच्ची का रंग सांवला था, और आँखें काले रंग की बड़ी-बड़ी सी थी। उसके बाल उसके कंधे तक थे और उसने लाल रंग की सुन्दर सी फ्रॉक पहन रखी थी। ध्वनि ने उस बच्ची की तरफ देखा और फिर उससे पूछा,
“क्या हुआ बेटा?”
कुछ पलों तक उस बच्ची ने कुछ भी नहीं कहा, बस वो सहमी नज़रों से ध्वनि को देखती रही। ध्वनि ने अपने सवाल को एक बार फिर दोहराया तो कांपती आवाज में उस बच्ची ने कहा,
“मम्मा के पास जाना है।”
ध्वनि ने अपनी नज़रें चारों तरफ घुमाई पर उसे उस प्रतीक्षालय के गलियारे में खुद के और उस बच्ची के अलावा और कोई नहीं दिखा। ध्वनि ने उस बच्ची का हाथ थामा और फिर उसके सामने झुककर पूछा,
“कहाँ हैं बेटा मम्मा? किसके साथ आयी तुम यहां?”
उस बच्ची ने ध्वनि को कोई जवाब नहीं दिया, बस गहरी और भरी-भरी नज़रों से उसे निहारती रही। ध्वनि को जब कुछ समझ नहीं आया तो उसने उस बच्ची का हाथ पकड़ा और अस्पताल के रिसेप्शन की दिशा में बढ़ गयी। अभी ध्वनि रिसेप्शन डेस्क से बस कुछ क़दमों की हीं दुरी पर थी, की किसी की आवाज उसके कानों से टकराई, किसी ने जोर से “रैना” कहकर पुकारा था। ध्वनि ने पलटकर देखा तो लगभग उसी की उम्र की एक युवती उससे कुछ दुरी पर खड़ी थी और बदहवास सी उसकी तरफ देख रही थी। वो बच्ची जिसने अबतक ध्वनि का हाथ थाम रखा था, उसने अपना हाथ छुड़ाया और उस युवती की तरफ दौड़ते हुए उसे बुआ कहकर पुकारा। ध्वनि भी उस तरफ बढ़ी और उस युवती से कहा,
“जी ये आपकी बच्ची है? ये गुम हो गयी थी, अपनी मम्मी को ढूढ़ते हुए मुझसे आ टकराई। मैं रिसेप्शन पर इसकी जानकारी देने हीं जा रही थी।”
उस युवती ने फीकी सी मुस्कान के साथ ध्वनि की तरफ देखा और कहा,
“ओह, थैंक यू। वो मैं रैना को हीं ढूंढ रही थी, इतनी हड़बड़ाहट और परेशानी में ये कब मेरा हाथ छुड़ा गयी, मुझे एहसास हीं नहीं रहा।”
ध्वनि ने हामी में सर हिलाया और फिर कहा,
“इट्स ओके। वैसे ये बच्ची अपनी मम्मी को ढूंढ रही थी, वो यहां नहीं हैं क्या?”
उस युवती की आँखों में नमी आयी और उसने थोड़ी झिझक के साथ कहा,
“वो आज दिवाली के लिए भैया, भाभी और रैना को लेकर घर आ रहे थे, हाईवे पर एक ट्रक वाले ने उनकी कार का एक्सीडेंट कर दिया। रैना को तो हल्की चोटें लगी पर भैया और भाभी, उन दोनों की हालत बहुत खराब है। मालुम नहीं आगे क्या होगा? मुझे बहुत डर लग रहा है।”
अपने वाक्यों को पूरा करते हुए वो युवती ध्वनि के सामने हीं रो पड़ी। ध्वनि ने उस युवती को थोड़ी हिम्मत देने की कोशिश की और उसे अपने कंधे पर रोने दिया। कुछ कमजोर पलों के बाद उसने खुद को संभाला और ध्वनि से कहा,
“आई एम सॉरी।”
ध्वनि ने उसके कंधे पर हाथ रखते हुए कहा,
“इसमें सॉरी की क्या बात है? अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के लिए हमें सॉरी बोलने की जरुरत नहीं होती। ऐसे आप हताश नहीं होईये, ईश्वर सब ठीक करेंगे।”
उस युवती ने ध्वनि की तरफ देखते हुए कहा,
“मेरा नाम पूजा है, आज लगभग एक साल के बाद भैया और भाभी दोनों ने एक-साथ छुट्टी निकाली थी। दोनों कॉर्पोरेट फील्ड से हैं तो उन्हें इतनी छुट्टी हीं नहीं मिल पाती कि इतनी दूर घर आ सकें। लगभग दो साल से हमसब ने इस दिवाली का इंतज़ार किया था और तैयारियां की थी, कि अबकी साथ ये त्योहार मनाएंगे। दोपहर हीं पहुँचने वाले थे ये सब, शाम को हमसब कॉल करते-करते परेशान थे। फिर एक कॉल आयी और सब बदल गया। काश हमने ये दिन प्लान हीं नहीं किया होता, काश इनदोनो की छुट्टियां स्वीकार हीं नहीं होती तो शायद हमें ये दिन नहीं देखना पड़ता।”
पूजा के आंसूं रुकने का नाम हीं नहीं ले रहे थे, और वो बच्ची रैना बार-बार अपने मम्मी-पापा से मिलने की जिद्द लिए उनके सामने खड़ी थी। इससे पहले कि ध्वनि उससे आगे कुछ कहती, कुछ और लोगों ने पूजा को आवाज दी, और वो रैना का हाथ थामे ध्वनि को छोड़ उस दिशा में बढ़ गयी। ध्वनि ने पीछे से जाती उस बच्ची रैना को देखा, जिसकी छवि हर बढ़ते कदम के साथ छोटी होती जा रही थी। उसके मन में बस एक हीं विचार कौंधा, कि इस उम्र में भी वो अपने पिता को खोने के विचार से इतनी बैचैन है, अगर कुछ गलत हो जाता है तो, जाने इस बच्ची के कोमल मन पर और जीवन पर क्या प्रभाव पड़ेगा? ध्वनि फिर वापस आई.सी.यू के उसी गलियारे में जा पहुंची जिसकी दूसरी तरफ उसके वृद्ध पिता, बिस्तर पर पड़े थे और मशीनों के माध्यम से साँसें ले रहे थे। अभी थोड़ी देर पहले जो ध्वनि बस अपने जीवन, अपने पिता और अपने दुखों में उलझी हुई थी अब उसके विचार उस छोटी बच्ची रैना की दिशा में दौड़ने लगे। उस बच्ची की स्थिति के समक्ष बस वो खुद को मजबूत महसूस करने लगी। उसके अंदर अपनी परिस्थितियों से लड़ने की एक नयी ऊर्जा का संचार हुआ। ऐसा हीं तो होता है, जब हम अपने दुःख की तुलना, अपने घाव की तुलना ज्यादा गंभीर और गहरे घाव से करते हैं तो हमें हमारे जख्म थोड़े कम दर्दपूर्ण लगते हैं। हमारा थोड़ा सा दर्द कम हो जाता है। घाव तो वैसे हीं रहते हैं पर टीस थोड़ी कम हो जाती है।
गलियारे में टहलती ध्वनि ने अभी एक कोने से दूसरे कोने तक चलने के अपने कुछ फेरे खत्म हीं किये थे, कि आई.सी.यू के एक कर्मी ने उसे आवाज दी और कहा, कि डॉक्टर साहब उनसे मिलना चाहते है तो वो डॉक्टर के चेम्बर में जा कर उनसे मिल ले। ध्वनि का दिल जोरों से धड़क रहा था कि जाने अब डॉक्टर उसे क्या कहेंगे। पर अपने मन को थोड़ा सयंमित कर वो डॉक्टर के चैम्बर तक पहुंची और दरवाजे पर दस्तक दिया। छोटे से गोल और हंसमुख चेहरे वाले डॉक्टर अभिनव सेन ने उसे अंदर आने को कहा और हाथों के इशारे से सामने वाली कुर्सी पर बैठने का इशारा किया। ध्वनि के पिता की फाइल मेज पर डॉक्टर के सामने खुली हुई थी और डॉक्टर अभिनव उस फाइल में लगी हर रिपोर्ट को पलट-पलट कर देख रहे थे। कुछ क्षणों के बाद उसने नजरें उठा कर ध्वनि को देखा और फिर मुस्कुराते हुए कहा,
“रिपोर्ट्स तो अब सब ठीक हैं, आज रात भर आई.सी.यू में रख कर कल हम आपके पिता को जनरल वार्ड में शिफ़्ट कर देंगे और फिर परसो आप उन्हें घर ले जा सकती हैं। दवाईयां अभी थोड़ी लम्बी चलेंगी, और फ़ॉलोअप के लिए आपको आना होगा।”
ध्वनि ने एक सुकून की सांस ली और अपने शरीर को थोड़ा ढीला छोड़ा और फिर कुर्सी की पीठ से जा लगी। उसने एक हल्की मुस्कान के साथ डॉक्टर को शुक्रिया कहा और फिर उसके चैम्बर से बाहर आ गयी। आज कई दिनों के बाद अंततः ध्वनि की सांसें सामान्य हुई थी और उसके चेहरे पर सुकून की मुस्कराहट उभरी थी। डॉक्टर के चैम्बर से निकलते हीं उसने अपना मोबाइल निकाला और घर पर माँ का नंबर पंच किया। आँखों में आंसू भरकर और ज़हन में एक सुकून के साथ उसने माँ से बात की और उन्हें बताया कि पापा अब ठीक हैं और जल्द हीं वो उन्हें घर ले जा सकते हैं। खबर सुनकर ध्वनि की माँ भी प्रसन्नता से भावुक हो उठी। ध्वनि अपनी छोटी सी खुशी को ठीक से अपना भी नहीं पायी थी, कि एक बार फिर से हो रही चीख-पुकार से उसका ध्यान भंग हुआ, उसने माँ का कॉल काटा और फिर कुछ कदम आगे बढ़ाये तो अस्पतालकर्मियों के एक समूह से जा टकराई जो ना जाने किस बात को लेकर आपस में भिड़े हुए थे। उसने पास खड़े एक कर्मी से पूछा कि क्या हुआ तो उसने बताया कि अभी थोड़ी देर पहले जो एक्सीडेंट वाले मरीज आये थे, उनमें से एक की साँसें बंद हो गयीं थी। ध्वनि का दिल धक् से रह गया और उसके अंदर ये हिम्मत भी नहीं बची थी कि वो उससे पूछ सके कि रैना के पिता ने दम तोड़ा था या उसकी माँ ने। हड़बड़ाते क़दमों से वो अस्पताल के प्रतीक्षालय की तरफ बढ़ी जहां उसे रैना के परिवार के अन्य लोग और पूजा दिखे। ध्वनि के अंदर इतनी हिम्मत नहीं थी कि वो उनके पास जाए और उन्हें कुछ भी कह सके। वो प्रतीक्षालय और मुख्य प्रांगण को विभाजित करने वाली शीशे की दीवार के उस पार से हीं उन सबको नम आँखों से देखते रही।
जहां एक ओर परिवार के अन्य सदस्य और पूजा भावविभोर हो कर रो रहे थे, और ईश्वर तथा समय को कोस रहे थे। वहीँ छोटी सी रैना बस घबराती निगाहों से सबको निहार रही थी। अभी भी अस्पताल के बाहर से जहां एक ओर पटाखों की आवाजें आ रहीं थी वहीँ दूसरी ओर अस्पताल के अंदर किसी अपने को खोने के दर्द से लोग जूझ रहे थे। अगले कुछ घंटों में ध्वनि को पता चला कि उन दोनों मरीजों में से दूसरे ने भी इस दुनिया को अलविदा कह दिया है, मतलब दिवाली की इस रौशनी भरी रात में रैना की दुनिया में अंधकार ने अपनी जड़ें जमा लीं थी। बस कुछ घंटों में हीं उसने अपने माता और पिता दोनों को हीं खो दिया था।
कुछ घंटों बाद अस्पताल फिर से सुना हो चूका था और ध्वनि फिर से तन्हा थी। दिवाली की वो रात जा चुकी थी और सुबह ने फिर से क्षितिज पर अपनी दस्तक दी थी। यूँ तो हर साल दिवाली जाने कितनी हीं खूबसूरत यादों का कारवां पीछे छोड़ जाती थी, पर इस साल की दिवाली बस ध्वनि को चकित और निःशब्द कर गयी।

3 Likes · 2 Comments · 660 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from Manisha Manjari
View all
You may also like:
मुक्ति
मुक्ति
Amrita Shukla
उफ़ ये गहराइयों के अंदर भी,
उफ़ ये गहराइयों के अंदर भी,
Dr fauzia Naseem shad
ॐ
सोलंकी प्रशांत (An Explorer Of Life)
जब तक आपका कामना है तब तक आप अहंकार में जी रहे हैं, चाहे आप
जब तक आपका कामना है तब तक आप अहंकार में जी रहे हैं, चाहे आप
Ravikesh Jha
4303.💐 *पूर्णिका* 💐
4303.💐 *पूर्णिका* 💐
Dr.Khedu Bharti
हाई स्कूल की परीक्षा सम्मान सहित उत्तीर्ण
हाई स्कूल की परीक्षा सम्मान सहित उत्तीर्ण
Ravi Prakash
ज़रा सी  बात में रिश्तों की डोरी  टूट कर बिखरी,
ज़रा सी बात में रिश्तों की डोरी टूट कर बिखरी,
Neelofar Khan
पुछ रहा भीतर का अंतर्द्वंद
पुछ रहा भीतर का अंतर्द्वंद
©️ दामिनी नारायण सिंह
।।अथ श्री सत्यनारायण कथा चतुर्थ अध्याय।।
।।अथ श्री सत्यनारायण कथा चतुर्थ अध्याय।।
सुरेश कुमार चतुर्वेदी
सिर्फ़ वादे ही निभाने में गुज़र जाती है
सिर्फ़ वादे ही निभाने में गुज़र जाती है
अंसार एटवी
नया
नया
Neeraj Agarwal
मेरी कलम से…
मेरी कलम से…
Anand Kumar
मुझे पहचानते हो, नया ज़माना हूं मैं,
मुझे पहचानते हो, नया ज़माना हूं मैं,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
रंजीत कुमार शुक्ला - हाजीपुर
रंजीत कुमार शुक्ला - हाजीपुर
हाजीपुर
परहेज बहुत करते है दौलतमंदो से मिलने में हम
परहेज बहुत करते है दौलतमंदो से मिलने में हम
शिव प्रताप लोधी
ये बात भी सच है
ये बात भी सच है
Atul "Krishn"
खत पढ़कर तू अपने वतन का
खत पढ़कर तू अपने वतन का
gurudeenverma198
ग़ज़ल (तुमने जो मिलना छोड़ दिया...)
ग़ज़ल (तुमने जो मिलना छोड़ दिया...)
डॉक्टर रागिनी
*साम्ब षट्पदी---*
*साम्ब षट्पदी---*
रामनाथ साहू 'ननकी' (छ.ग.)
जिंदगी! क्या कहूँ तुझे
जिंदगी! क्या कहूँ तुझे
जितेन्द्र गहलोत धुम्बड़िया
कुछ रिश्ते भी रविवार की तरह होते हैं।
कुछ रिश्ते भी रविवार की तरह होते हैं।
Manoj Mahato
शीर्षक:-मित्र वही है
शीर्षक:-मित्र वही है
राधेश्याम "रागी"
..
..
*प्रणय*
शैलजा छंद
शैलजा छंद
Subhash Singhai
कोई शुहरत का मेरी है, कोई धन का वारिस
कोई शुहरत का मेरी है, कोई धन का वारिस
Sarfaraz Ahmed Aasee
मोहब्बत बस यात्रा है
मोहब्बत बस यात्रा है
पूर्वार्थ
" गुनाह "
Dr. Kishan tandon kranti
जन्म दिया माँबाप ने,  है उनका आभार।
जन्म दिया माँबाप ने, है उनका आभार।
seema sharma
मैं अकेला ही काफी हू  जिंदगी में ।
मैं अकेला ही काफी हू जिंदगी में ।
Ashwini sharma
गुस्ल ज़ुबान का करके जब तेरा एहतराम करते हैं।
गुस्ल ज़ुबान का करके जब तेरा एहतराम करते हैं।
Phool gufran
Loading...