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27 Feb 2021 · 1 min read

एक दिवस…..(हास-परिहास)

एक दिवस हम खड़े हुए थे,
अपनी छत के ऊपर,
ताक-झांक में मगन मस्त थे,
कभी इधर, तो कभी उधर,

तभी अचानक पड़ा दिखाई,
एक सिंगनल सा हमको,
मन मयूर हो नाच उठा,
भूल गया सुध-बुध को,

लगा कि जैसे दूर कहीं से,
कोई हमें बुलाता है,
इसीलिए तो चोटी अपनी,
बार-बार लहराता है,

छोड़-छाड सब ताम-झाम,
हम झटपट नीचे आये,
इसी हड़बड़ाहट में यारो,
कई जगह टकराये,

जैसे-तैसे जान बचाकर,
पहुँचे उनके द्वारे,
किन्तु वहां जब जाकर देखा,
गायब थे घरवारे,

केवल हमको पड़ी दिखाई,
एक भैंस काली सी,
वही दूर से हमें लगी थी,
अपनी दिलवाली सी,

हमें देखकर उसने अपनी,
मारी पूँछ घुमाकर,
जिसे समझ चोटी उनकी,
हम आये दौड़ लगाकर,

सहकर उसकी पूँछ प्यार से,
एकदम बाहर आये,
जैसे बुद्धू जान बचाकर,
वापस घर को जाये।

✍- सुनील सुमन

Language: Hindi
3 Likes · 3 Comments · 398 Views
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