एक दिया
जलाया था एक दिया मैंने जो करता था रौशन घर मेरा,
उसकी रौशनी की किरणों से रौशन था मन का आंगन मेरा।
किया वर्षों तलक हिफाजत हमने उसकी, बनाकर अपनी बाहों का घेरा,
रखा था महफूज उसे , चारों तरफ़ फैला था आंचल मेरा।
हर मुश्किल हर तकलीफ हंस कर यूं हम झेल गये,
हरपल की थी कोशिश, झोंका कोई उस तक पहुंच ना पाए।
वर्षों तलक की हिफाजत का दिये ने कैसा सिला दिया,
जिसकी खातिर लड़े अकेले,उसी ने था दामन जला दिया।
हंसता रहा वो बेरुखी से,हम बस जलते रहें तड़पते रहें,
होंठ थे सिले, आंखें थीं नम, ख़ामोशी से बस उसे देखते रहें।
क्या कुसूर था मेरा, मेरे खुदा मुझको समझा दे,
हूं अगर मैं कुसूर वार तो, मुझको दोजख में जला दे।