एक दिया अनजान साथी के नाम
डा . अरुण कुमार शास्त्री
एक अबोध बालक- अरुण अतृप्त
एक दिया एय सखी
मैने तेरे नाम किया
प्रेम से प्यार से
तुझको तोह्फा दिया
एक दिया ……
जिन्दगी में अनेकों
साथी मिले
कोई मिल के भी
अपना हुआ न हुआ
डोर तुझसे – ओ डोर
तुझसे बिना बाँधे बँध गई
ईश का न जाने
ये कैसा जादु हुआ
सिलसिला यादों का
फिर चल पडा
एक दिया एय सखी
मैने तेरे नाम किया
बात इतनी ही होती,
तो बहुत था मगर
बात इससे भी आगे
चल पडी थी मगर
फिर तो जीना भी
मेरा मुहाल हो गया
बिन मिले दिन
गुजरता था ही नही
ईश का न जाने
ये कैसा जादु हुआ
एक दिया एय सखी
मैने तेरे नाम किया
प्रेम से प्यार से
तुझको तोह्फा दिया
एक दिया ……
जिन्दगी भर रहेगा
साथ् मेरा तुम्हारा
एक प्यारा सा घर
भी होगा हमारा
एय मेरे हमन्वा
एय मेरे हम सफर
तुम मुझे हाथ हाथों
में देकर
भूल तो न
जाओगे जिगर
डोर तुझसे – ओ डोर
तुझसे बिना बाँधे बँध गई
एक दिया एय सखी
मैने तेरे नाम किया
प्रेम से प्यार से
तुझको तोह्फा दिया
एक दिया ……