एक दिन हम भी चुप्पियों को ओढ़कर चले जाएँगे,
एक दिन हम भी चुप्पियों को ओढ़कर चले जाएँगे,
दिल की बातों को सीने में लिए कहीं खो जाएँगे।
हर एक लफ्ज़ जो दिल में था, कहने से रह गया,
हर ख्वाब जो आँखों में था, वहीं पे ठहर गया।
हम सोचते ही रह जाएँगे, काश कुछ कहा होता,
इस ख़ामोशी के शहर में अपना दिल बयाँ किया होता।
जो अनकही बातें हैं, वो सदा दिल में चुभेंगी,
आख़िरी साँस में वही कसक बनकर उभरेंगी।
ज़िंदगी तो कट जाएगी, मगर वो ग़लती साथ रहेगी,
आखिरी ख़याल में भी ये ख़ामोशी ही सवार रहेगी।
हमें बोलना चाहिए था, ये सोचते-सोचते जाएँगे,
बस यही सोचकर हम सब अपनी चुप्पियाँ लेकर मर जाएँगे।