एक दिन संस्कृति का भी अंत है !
कोई भी संस्कृति
एक लंबे समय तक
अक्षुण्ण नहीं रह सकती !
अगर रह गयी,
तो उनमें न चाहकर भी
विसंगतियाँ
आने लग जायेगी !
बकौल प्रेमचंद-
मैं कलमकार हूँ,
जिस दिन ना लिखूँ,
उसदिन मैं भोजन नहीं करता !
कलम-स्याही की
नित्य आराधना करता हूँ,
कि कर्म ही पूजा है….