एक दिन बिना इंटरनेट के
एक दिन बिना इंटरनेट के कैसे बीता,
आओ सुनाऊँ यह कहानी, बस दो दिन है पुरानी।
रात के आंँधी तूफान ने इंटरनेट को हिला दिया,
वाई-फाई का सिग्नल हर फोन से उड़ा दिया।
अफसोस तो इस बात का कि सब टी वी भी वाई फाई से चलते थे,
घर में जिसे देखो वह यहाँ- वहाँ उचकते से फिर रहे थे।
पूछो कुछ , जवाब कुछ और आता था,
हर बार बात करने का वॉल्यूम बढ़ता जाता था।
आज की जनरेशन तो नैट की आदी हो गई है,
फोन,लैपटॉप ,कंप्यूटर, टीवी सब वाईफाई पर टिकी है।
मौसम खराब मोबाइल डाटा भी काम ना कर रहा था,
कंपनी पर कम्पलेंट का कोई असर ना हो रहा था।
सुबह के नाश्ते का समय कहांँ चला गया किसी को पता ना चला,
वाईफाई की कम्पलेटों से ही बस सब ने पेट भरा।
थोड़ी सी तसल्ली तब हुई जब मैकेनिक का फोन आया,
वाईफाई को चलाने हेतु एक कर्मी कंपनी से घर आया।
उसे देखकर हर चेहरे के रौनक ही बदल गई,
मानो जैसे कोई कीमती खोई हुई चीज मिल गई।
सब चैक करके जब उसने कहा यहांँ तो सब ठीक है,
बाहर कहीं किसी खंबे में ही कुछ गड़बड़ है।
चेहरे पर आई मुस्कान यूंँ गायब हो गई जैसे..
मेहमान के आने से पहले ही बिल्ली दूध चट कर गई।
घर में जितने प्राणी उतनी ही अलग वाणी,
कैसे वाईफाई चले हर तरफ चल रही थी कारसतानी।
इन्ही सब चक्करों में किसी को लंच याद ना आया,
मैं बहुत खुश थी चलो काव्य लिख डाला।
पहली बार ऐसा, सब घर में पर ना नाश्ता ना लंच,
5:00 के बाद शाम को नेट हुआ बंदोबस्त ।
जल्दी से चाय बनाने का ऑर्डर आया,
सबने भी चाय ब्रेड खाने का मन बनाया।
सबसे अधिक मजा तो तब आया
जब रात का खाना बाहर से आर्डर करवाया।
नेट गया, दिन कैसे बीता मुझे तो बहुत मजा आया,
मैंने तो दो-तीन कविताओं का प्रारूप बनाया।
अगर खाने से छुट्टी मिलती हो तो प्रभु से है बस एक कामना ,
महीने या हफ्ते में एक बार नैट का कर दो खातमा।
नीरजा शर्मा