एक दिन छोड़ी के खतोना चलि जइबू चिरई
एक दिन छोड़ी के खतोना चलि जइबू चिरई।
एहि माया के नगरिया फेरु ना अइबू चिरई।
महल अटारी कुछऊ साथ नाहिं जाई।
रह जाई इहवें माल दउलत कमाई।
देखिहऽ अंत समइया पछतइबू चिरई।
एहि माया के नगरिया फेरु ना अइबू चिरई।
पिंजरा के छोड़ी जहिया उड़ी जइहन सुगना।
देह होई माटी माटी होई जाई गहना।
मोह की फेरा में केतनो अझुरइबू चिरई।
एहि माया के नगरिया फेरु ना अइबू चिरई।
हरि सुमिरन करऽ जिनगी सुधारऽ।
भवसागर से ‘सूर्य’ खुद के उबारऽ।
दुखवा पइबू इहँवा जेतने मोहइबू चिरई।
एहि माया के नगरिया फेरु ना अइबू चिरई।
(स्वरचित मौलिक)
#सन्तोष_कुमार_विश्वकर्मा_सूर्य
तुर्कपट्टी, देवरिया, (उ.प्र.)
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