“एक थी इ”
एक थी ‘इ’
चुलबुली अल्हड़ शोख
हंसती तो जैसे चूड़ियाँ खनक जातीं
और एक था ‘क’
शांत ,सहज।
वो उसके आगे वाली गली में रहता था।
जब वो निकलती उस गली से
वो ताकता रहता उसे,,,,
भरता रहता आहें
जब छूता उसका दुपट्टा
उसके चेहरे को!
उसकी भीनी खुशबू घण्टों
‘क’ की सांसों में समाई रहती,,,,,,
हर रोज रख आता
वो एक गुलाब
इ के दरवाजे,,,,
और ‘इ’ निकलती इतराकर
सजाये उस गुलाब को
सुनहरे बालों के गजरे में!
आँखें बोलती थीं बहुत कुछ
पर बीच में थी एक गहन ख़ामोशी
बोलना चाहा था क ने
एक रोज कुछ,
पर रख दिए इ ने
उसके होठों पर होंठ
एक खामोश आवाज के साथ
श्श्श्श्श्शशशशश्,,,,,,,,,
और इस तरह बनके
उन दोनों की रूँह के मिलन
गवाह,
हमेशा के लिए आ गया
इ और क के बीच श्श्श्शश्श्श्!
और दोनों में बना
एक नया रिश्ता
‘इश्क’!!!!!!!!
@@सरगम@@