एक था बचपन
बचपन की याद मे लिखी मेरी कविता✍
?एक था बचपन?
बचपन के दिन भी क्या दिन थे,
कभी खेला,तो कभी मौज मेलों के दिन थे??
जब छोटे बच्चे थे तो रो-रो के भेजे जाते थे स्कूल..
संगी, साथी मेल हूऐ तो, छूट्टी के दिन भी नहीं रह पाते दूर…
खोखो,कब्बड्डी, ऐसी भाती…
नींद मे सोते भी लम्बी दौड लगाती…
यूं तो माँ हर रोज टिफीन मे मस्त चीजे बनाती..
पर दोस्तों के टिफिन की थी बात ही कुछ निराली..
स्कूल की घंटी कभी खुद भी बजाया करते..
और बजे न जूता सर पर “सर” का
धरे बस्ता साईकिल पर घर भाग आया करते..
बारीश का वो मंजर भी बहुत गुदगुदाता…
झुमते,नाचते, कुदते जाने कैसे पूरा दिन बीत जाता..
ये बचपन कहलाता मस्ती की पाठशाला..
जिन्दगी का सारा सबक इसने सिखा डाला..
आज वयस्त जीवन में थकान नही मिटती..
मन के कोने मे पडी बाल मन की पहचान नही मिटती..
काश की अतीत फिर लौट आता..
मेरा बाल मन फिर इठलाता…
ऐसा था हम सब का बचपन…
हमारा तुम्हारा सब का बचपन..
अमृता तिवारी✍✍✍