एक तो धर्म की ओढनी
एक तो धर्म की ओढनी
ऊपर से राजनीतिक छोंक
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दोहरी शक्ति का समावेश
मिलते नहीं कहीं अवशेष,
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तोड़ कर अपनी भाव भंगिमा,
महावीर गौतम भंगनवान हुए.
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बिछा कर बिसात पयादे बिठा दिये,
रहेगा क्षमताओं में अंतर, कह गये,
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मन की शक्तियां, साधन साधक
ध्यान धारणा समाधि पर खत्म हुई.
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अहिंसा सत्य पंचशील, करुणा, प्रेम
मानवीय मूल्य सहज भाव प्रकृति हो गई.
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क्षत विक्षिप्त शरीर, स्वाभाविक रोग,
भूख प्यास लडाई वजूद की लडते रहे.
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संयम रख, यम, नियम, प्राणों की साधना,
सब के अपने अपने कर्म छोड़े व्यर्थ कामना
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(महेन्द्र सिंह मनु)