एक तेरे नाम पर
हजारों आँसू पी गई वह एक तेरे नाम पर
दर बदर फिरती रही वह एक तेरे नाम पर।
क्या होता दिल का लगाना थी नही वह जानती
पर कब दीवानी बन गई वह एक तेरे नाम पर।
तूने उसके दिल की कीमत को कभी समझा नहीं
एक नहीं सौ बार टूटा वह दिल तेरे एक नाम पर।
वह तो बहती दरिया थी बस बहती जाती थी मगर
पर आज आँखे तक सूखी पड़ी है एक तेरे नाम पर।
औरों को जीवन जीने की कला सिखाती थी कभी
पर आज स्वयं ही मर मिटी वह एक तेरे नाम पर।
सिंदूर तेरे नाम का वह अपने मस्तक सजाती रही
पर हर बार गिरी सम्मान में वह एक तेरे नाम पर।
– विष्णु प्रसाद ‘पाँचोटिया’