एक तरफा प्यार
एक तरफा प्यार
इस प्यार को क्या पता,
जिसे विश्वास नहीं इस प्यार का।
मैं तो तुमे अपने अंजली के,
लकीरों में ढूँढ़ा करता हूँ ।
तुम्हारे लकीरें भी जो हमें ,
अपने अंजली में नहीं है ।
भगवान भी नहीं जाने ,
मैं तुमे कितना ढूढ़ता रहता हूँ।
कितना संदेश तुमे भेजा हूँ,
ये बस तुम्हारा दिल जानता होगा ।
कितना प्यार किया हूँ,
ये बस मेरा एक तरफा महोब्बत जानता होगा।
रूठी थी तो कह देती ,
शायद मेरा एक तरफा प्यार मना लेता ।
इतना आसान कहाँ ,है तुम्हे भुल पाना,
जब उस रास्ते से गुजरता हूँ तो,
आज भी वो हर लम्हा याद आ ही जाता है ।
कोई जा कर बता तो दे,हमें
यहाँ अपनें ही नहीं होते अपनों के,
परायो पे विश्वास कौन करे ?
-✍️निशांत प्रखर