एक तमन्ना है।
एक तमन्ना है अपने माँ-बाप को मैं हज पर भेजूं।
या इलाही कुछ काम दे दे हमको भी थोड़े से पैसों को इकठ्ठा कर लूं।।1।।
माँ बड़ी परेशान रहती है मेरी इस ज़िंदगी को लेकर।
समझा-समझा कर वह थक गई है कि मैं भी ज़िंदगी मे कुछ सुधरूं।।2।।
या खुदा एक मौका और दे दे मुझको सुधरने के लिए।
तेरे करम से मैं अपनी माँ-बाप की झोली को फिर से खुशियों से भर दूं।।3।।
मेरे रब तू भी तो अब मेरी फरियादों को सुनता नहीं है।
अब तू ही बता दे मेरे खुदा मैं अपनी दुआओ को तेरे पास कैसे भेजूं।।4।।
माँ-बाप को मुझपे था गुमां पर अब हूँ मैं बेअक़ीदें में।
इलाही उनके बेअक़ीदें को ज़िन्दगी में मैं फिर से अक़ीदे में कैसे बदलूँ।।5।।
ऐसा ना हो ज़िन्दगी में सदा की तरह फिर देर हो जाये।
बीत जाए यह वक्त भी और मैं उनके लिए यहाँ कुछ कर भी ना सकूँ।।6।।
मुझे चाहिए अकीदा मेरे माँ-बाप का फिर से मुझ पर।
मेरे खुदा तू ही बता मैं इसके लिए क्या कुछ उनकी इस ज़िन्दगी में करूँ।।7।।
मुझे फिक्र नहीं कि सारी दुनिया मुझे क्या समझती है।
मुझको किसी की परवाह नहीं मैं तो बस अपने माँ-बाप की फिक्र में हूँ।।8।।
ज़िन्दगी का काम है चलना वह चलती ही जा रही है।
ऐ वक्त तू थोड़ा सा बदल जा मैं माँ-बाप के साथ सुकूँ के कुछ पल जी लूँ।।9।।
पता है मुझको तुम सबको मुझसे कहना है बहुत कुछ।
मैं तुम सबकी की ही सुन लूंगा पर पहले मैं अपने माँ-बाप की सुन लूँ।।11।।
ताज मोहम्मद
लखनऊ