एक डोज सच का भी!
हम दूसरों के सच बता रहे हैं,
अपने सच को छुपा रहे हैं,
हां यह सच है गलतियां हुई हैं भारी,
पर क्या हमने भी निभाई अपनी जिम्मेदारी,
हमने भी तो मान लिया ,
महामारी को जीत लिया,
यही चूक सरकारें भी कर गई,
और आज फटकारें सह रही,
सबके सब उत्सव मनाने लगे थे,
हम बिना मास्क के आने जाने लगेे थे,
तो सरकारें भी लोकतंत्र का उत्सव मनाने लगी,
चुनावों में खुब भीड़ जुटाने लगी,
आखिर यह उत्सव आता भी तो पांच साल में है,
और जहां अपनी सरकार नहीं हो,
वहां पर उम्मीद जगती भी पांच साल में है,
फिर सत्ता धारी ही क्यों कमी करने लगें,
अपनी सत्ता बचाने का उमक्रम करने लगे,
और यह उन्होंने करके दिखाया भी,
सिर्फ एक दल के सिवा जो अपनी सरकार नहीं बचा पाया,
एक जगह से तो उपविजेता का ताज भी गंवा गया
वहां तो उसने लुटिया ही डूबो दी
पर दिल को बहलाने के लिए,
एक राज्य में साझेदारी करने को रही है!
पर मैं इस पर इतनी तवज्जो नहीं देता,
कोई हारता है तो कोई है जितता,
लेकिन यहां पर सबसे बड़ी हार तो,
उसी को मिली है,
जिसके हितों के लिए यह सब लड़ने की बात कर रहे थे!
वह तो चारों खाने चित्त हो पड़ा है,
बंद इंतजामियों आगे दम तोड़ रहा है,
अस्पताल में बिस्तर नहीं मिल रहे हैं,
यदि कहीं को किसी की शिफारिश पर मिल भी रहे हैं,
तो वहां दवाओं का बताते हैं अभाव,,
और रेमडिशियर को तो ले रहे हैं बे भाव,
आक्सीजन का तो यह भी पता नहीं ,
सांस रहने तक यह मिलती भी है कहीं !
अब हम चिल्ला रहे हैं,
यह सरकारों की कमी है,
क्या हम यह नहीं जानते थे,
हमारे गांव गांव में अस्पतालों ही नहीं डिस्पैंसरी की भी कमी है,
फिर भी हम बे झिझक होकर डोल रहे हैं,
काम करने वाले को तो जाना ही पड़ता है,
किन्तु हमने तो पिकनिक जाना शुरू किया था,
विवाह शादी में भी खूब धूम धड़ाका करने लगे,
बिना मास्क के बहादुरी जताने लगे!
अब वैक्सीन के लिए भी अफ़रा-तफ़री मची है
वैक्सीन केन्द्रो पर इसकी आपूर्ति की कमी है ,
लम्बी लम्बी पंक्तियों में आम आदमी खड़ा है,
संकट यह बहुत ही बड़ा है!
अब भी जाग जाएं तो संभल सकते हैं,
आओ चलो कुछ दिन घर पर ही ठहरते हैं,
अपने अंदर के सच को जगाने का वक्त है,
ना ही किसी को उकसाने का वक्त है,
नहीं है यदि कोई काम तो घर पर ही समय बिताइये,
अपने आस पास के लोगों को भी समझाइये,
रहे यदि जिंदा तो फिर सब कुछ मनाएंगे,
यदि कर दी थोड़ी हठधर्मिता ,तो फिर घर वाले ही पछताएंगे,
आओ चलो हम इस सच को स्वीकारें,
यदि हमारी सरकारें में हैं नक्कारे,
तो हम भी नहीं उनसे कम के नक्कारे,
माना कि वैक्सीन का अभाव है,
लेकिन सच तो हमारे पास भरा पड़ा है,
उसे हम अपने जीवन में ढालें,
सच का यह डोज अब हम सब लगा लें!