एक ठोकर क्या लगी..
गीत-87
एक ठोकर क्या लगी वे बिलबिलाने लग गये।
याद हमको फिर वही कसमे दिलाने लग गये।।
लाख कहता मैं रहा पर सुन नहीं पाये कभी।
हो गया बदलाव कैसे दिख रहा है जो अभी।।
हर किसी से हाथ अपना वे मिलाने लग गये।
याद हमको फिर वही कसमे दिलाने लग गये।।
जो नहीं समझे महत्ता आज-तक इंसान की।
बात करने लग गये हैं अब वही पहचान की।।
दिल मिले या ना मिले रिश्ते गिनाने लग गये।
याद हमको फिर वही कसमे दिलाने लग गये।।
कह रहे हैं हाथ जोड़े अब बदल सकते नहीं।
यदि परखना चाहते हो तो परख सकते कहीं।।
हाथ अपनों से वही झुककर मिलाने लग गये।
याद हमको फिर वही कसमे दिलाने लग गये।।
सज गये दरबार मौसम फिर वही कहने लगे।
जो गये थे रूठ उनसे साथ वह चलने लगे।।
मर गई उम्मीद को फिर से जिलाने लग गये।
याद हमको फिर वही कसमे दिलाने लग गये।।
एक ठोकर क्या लगी वे बिलबिलाने लग गये।
याद हमको फिर वही कसमे दिलाने लग गये।।
डाॅ. राजेन्द्र सिंह ‘राही’
(बस्ती उ. प्र.)