एक टुकड़ा धूप
एक धूप का टुकड़ा
आज सुबह सवेरे
पेड़ की ओट से
मेरे आँगन में
झांक रहा था।
मैंने कहा उससे
रुकना जरा वहीं
आती हूँ थोड़ी देर में
अभी व्यस्त हूँ मैं जरा
तब तुम संग बैठ कर
बातें करुगी तुझसे मैं।
वो धूप का टुकड़ा
हँस कर बोला
आना जरा जल्दी तुम
मुझे जाना है ओर कहीं
कहीं देर न हो जाए
तुम्हारे आने में
और चली न जाऊँ मैं कहीं।
भावना कुमारी