एक चेहरा
आज तक नही भूल पाई हूँ मैं वो एक चेहरा। एक साल जूनियर थी प्रीति ।बहुत ही होनहार लड़की थी। साथ ही फुटबॉल की बढ़िया खिलाड़ी भी। रेलवे लाइन के पार रहती थी । साईकल से स्कूल आती थी । सुना था सौतेली माँ थी उसकी जो उसे बहुत परेशान रखती थी। पर जब भी मैंने उसे देख मुस्कुराते हुए देखा । एक घटना मेरे मस्तिष्क पर हमेशा छाई रहती है। रोज की तरह मैं पैदल स्कूल के लिए निकली । देखा प्रीति लौट रही है। मैंने पूछा क्या हुआ बोली एक कॉपी भूल गई लेने जा रही हूं। जब तक मैं स्कूल पहुंची तो सुना प्रीति ने ट्रेन के नीचे आकर आत्महत्या कर ली।पड़ोसियों ने बताया कल रात उसके पापा ने भी उसे मारा था। मां के जुल्म तो सह गई पर शायद पापा का ये रूप सहन नही कर पाई चौदह साल की मासूम बच्ची । और मैं सिर्फ चंद मिनट पहले भी उस चेहरे पर ये नही पड़ सकी कि वो इतना भयंकर काम करने जा रही है। आज भी आंखों के आगे है वही मुस्कुराता चेहरा…..
01-06-2018
डॉ अर्चना गुप्ता