एक चुटकी नून ढूंढ रही हूँ
एक चुटकी नून(नमक) ढूंढ रही हूँ,
अपने जख्मों पे रगड़ने को
ताकि सारी रात हाय-हाय करती रहूं,
सिसकती, सुबकती रहूं, भोर होने तक,
तुम लोगों के जागने तक
ताकि तुम जागो,
मेरे साथ हाय-हाय करो,
रोओ,पीटो,खरोचों अपने जख़्मों को,
अपने दातों नाखूनों से गहरा करो,
उन जख़्मों को, जो दीखता नहीं
बस रिसता है आत्मा के तहखाने में,
की पर्द पे सर पीटना पड़े,
तो पीटो पर आवाज़ बुलंद करो,
बहरों को सुनाने को
जिन्हें परवाह नहीं,
जख़्मी मन और जख़्मी आत्मा की
उनकी सांसे और कान सुलगाने को
अपनी आवाज़,बहरे कानों तक पहुंचाने को
आवाज़ दो अपने जख्मों कि तासीर बताने को,
आवाज़ दो डरी सहमी ख़ामोशी मीटाने को !
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01 -01 -2019
मुग्धा सिद्धार्थ