एक चिड़िया
सुबह की पहली धूप की किरण,
छन कर आती है जब मेरी बालकोनी में,
रंगबिरंगा इंद्र्धनुष छिटका सा जाता है,
तभी अचानक इक छोटी सी चिड़िया,
नीले पंख लिए आती है अकसर,
रंगबिरंगी इस धूप में,
नाचती सी लगती है हमेशा मुझे वो,
इधर-उधर तलाशती कुछ ख़ाने को,
यह चिड़िया पहली बार नही,
अक्सर आ जाती है मेरी बालकोनी में,
जानबूझ कर छेड़ती,
दूर बैठे मेरे शांत कुत्ते को,
जो देख कर भी उसको अडोल बैठा रहता,
शायद अपने बड़े होने का परिचय देता,
या उसे अच्छी लगती उसकी अठखेलियाँ,
चिड़िया उसके कान में कहती बहुत कुछ,
ऐसा लगता मुझे,
और कुत्ता शांत भाव से सुनता सब कुछ,
वो हँसती, फुदकती उसके चारों ओर,
वो अपने मौन से प्रकट करता स्वीकृति अपनी,
दोनों की केमिस्ट्री मुझे कमाल लगती,
लगता मानों प्रेम में बँधे हो जैसे,
दोनों को बर्दाश्त करना आता है,
इक दूसरे को,
रोज़ एक ही क्रम दोहराते दोनों,
फिर भी बार-बार देखना इन्हें,
नया सा लगता, कुछ अच्छा सा लगता,
बार बार, हर बार