एक चाह
सुन मैया मोरी,
दुलहिन लैहों राधा सी गोरी।
चंद्रवदन नीकी हो चितवन नयना अधिक रसाल,
भू परसत से हों केश गजगामिन सी चाल।
पिक से मीठे बोलै बोल, ज्यों बृष भानु किसोरी ……।
प्रात उठत जो रार मचावै कर्कश बोल सुनावै,
सुन मैया ऐसी कुलच्छनी मेरे मन नही भावै।
जासों भलौ रहूँ मैं क्वारौ तू लै आवै नारि छिछोरी….।
जयन्ती प्रसाद शर्मा, दादू ।